26-01-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

ज़िम्मेवारी उठाने से फायदे

तुम बच्चे हो विश्व को परिवर्तन करने वाले विश्व के आधार मूर्त। उद्धार करने वाले भी हो और साथ-साथ विश्व के आगे उदाहरण बनने वाले भी हो। जो आधारमूर्त होते हैं उनके ऊपर ही सारी ज़िम्मेवारी रहती है। अभी आपके एक-एक कदम के पीछे अनेकों के कदम उठाने की ज़िम्मेवारी है। पहले साकार रूप फालो फादर के रूप में सामने था। अभी आप लोग निमित्त मूर्तियां हो। तो ऐसे समझो कि जैसे जिस रूप से जहाँ हम कदम उठायेंगे वैसे सर्व आत्मायें हमारे पीछे फालो करेंगी। यह ज़िम्मेवारी है। सर्व के उद्धारमूर्त बनने कारण सर्व आत्माओं की जो आशीर्वाद मिलती है तो फिर हल्कापन भी आ जाता है, मदद भी मिलती है। जिस कारण ज़िम्मेवारी हल्की हो जाती है। बड़ा कार्य होते हुए भी ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कोई करा रहा है। यह ज़िम्मेवारी और ही थकावट मिटाने वाली है। फ्री रहना मन को भाता ही नहीं है। ज़िम्मेवारी अवस्था को बनाने में बहुत मदद करती है। बापदादा जब महारथी बच्चों को देखते हैं तो सभी के वर्तमान स्वरूप और इसी जन्म के अन्तिम स्वरूप और दूसरे जन्म के भविष्य स्वरूप तीनों ही सामने आते हैं। आप लोगों को यह फीलिंग स्पष्ट रूप में आती है कि यह हम बनने वाले हैं, हम ताज व तख्तधारी होंगे? आगे चल यह भी अनुभव करेंगे। जैसे साकार रूप में प्रत्यक्ष अनुभव किया ना। कर्मातीत अवस्था भी स्पष्ट थी और भविष्य स्वरूप की स्मृति भी स्पष्ट थी। भविष्य संस्कार इस स्वरूप में प्रत्यक्ष दिखाई देते थे। तो आप सभी ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि बस यह शरीर छोड़ा और वह तैयार है। बुद्धिबल द्वारा इतना स्पष्ट अनुभव होगा। अभी दिन प्रतिदिन अपनी सर्विस से अपने सहयोगीपन से और अपने संस्कारों को मिटाने की शक्ति से अपने अन्तिम स्वरूप और भविष्य को जान जायेंगे। पहले कहते थे ऐसा समय आयेगा जो नज़दीक वाले और दूर वाले स्पष्ट दिखाई देंगे। लेकिन अब वह समय चल रहा है। जो दैवी परिवार की आत्मायें हैं वह समझ सकती हैं - कौन-कौन समीप रत्न हैं। जिनको जितना समीप आना है वह सरकमस्टांस अनुसार भी इतना समीप आयेंगे। जिनको कुछ दूर होना है तो सरकमस्टांश भी बीच में निमित्त बन जायेंगे, जो चाहते हुए भी आ नहीं सकेंगे। यह सभी भविष्य का साक्षात्कार अभी प्रैक्टिकल सर्विस चल रही है। अपने भविष्य को जानना अब मुश्किल नहीं है।

हरेक को व्यक्तिगत अपने लिए भी कोई विशेष प्रोग्राम रखना चाहिए। जैसे सर्विस आदि के और प्रोग्राम बनाते हो, वैसे सवेरे से लेकर रात तक बीच-बीच में कितना और कैसे अपनी याद की यात्रा पर अटेन्शन रखने के लिए प्रोग्राम रख सकते हो -- यह डायरी बनानी चाहिए। अमृतवेले ही याद का प्लैन बनाना चाहिए। समझो, आप लोग कोई स्थूल कार्य आदि में बिज़ी रहते हो; लेकिन उसमें भी थोड़े समय के लिए जैसे नियम बांधा हुआ हो याद में रहने का। उस समय दूसरे को भी दो-तीन मिनट के लिए स्मृति दिलाओ कि -- अभी हमारा यह कार्य है, आप भी याद में रहो। जैसे मुकर्र टाइम पर ट्रैफिक भी रोक लेते हैं। कितना भी भले ज़रूरी काम हो, कोई पेशेन्ट को हॉस्पिटल में जाना होगा तो भी रोक लेंगे। इस रीति जहाँ तक कर सको उतना टाइम-टेबल अपना बनाओ। तो और भी देखेंगे इन्हों का यह टाइम याद का मुकर्र है तो और भी आपको फालो करेंगे। कोई कार्य हो उनको आगे पीछे करके भी दो चार मिनट का टाइम याद में रहने लिए ज़रूर निकालो तो उससे वायुमण्डल में भी सारा प्रभाव रहेगा। सभी एक- दो को फालो करेंगे। बुद्धि को रेस्ट भी मिलेगी और शक्ति भी भरेगी और वायुमण्डल को सहयोग मिलेगा। फिर एक अनोखापन दिखाई पड़ेगा। जैसे कुछ समय आप एक दो को याद दिलाते थे - शिव बाबा याद है? वैसे ही जब देखते हो कोई व्यक्त भाव में ज्यादा है तो उनको बिना कहे अपना अव्यक्ति शान्त रूप ऐसा धारण करो जो वह भी इशारे से समझ जाये। तो फिर वातावरण कुछ अव्यक्त रहेगा। तुम्हारी अन्तिम स्टेज है - साक्षात्कार मूर्त। जैसा-जैसा साक्षात् मूर्त बनेंगे वैसे ही साक्षात्कारमूर्त बनेंगे। जब सभी साक्षात् मूर्त बन जायेंगे तो संस्कार भी सभी के साक्षात् मूर्त समान बन जायेंगे। अपने को निमित्त समझकर कदम उठाना है। जैसे आप लोगों से ईश्वरीय स्नेह, श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ चरित्रों का साक्षात्कार होता है, वैसे अव्यक्ति स्थिति का भी उतना ही स्पष्ट साक्षात्कार हो। ऐसा प्लैन बनाना चाहिए जो कोई भी महसूस करे - यह तो चलता फिरता फरिश्ता है। जैसे साकार रूप में फरिश्तेपन का अनुभव किया ना। इतनी बड़ी ज़िम्मेवारी होते भी आकारी और निरा- कारी स्थिति का अनुभव कराते रहे। आप लोगों का भी अन्तिम स्टेज का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देना चाहिए। कोई कितना भी अशान्त वा बेचैन घबराया हुआ आवे लेकिन आपकी एक दृष्टि, स्मृति और वृत्ति की शक्ति उनको बिल्कुल शान्त कर दे। भले कितना भी कोई व्यक्त भाव में हो लेकिन आप लोगों के सामने आते ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करे। आप लोगों की दृष्टि किरणों जैसा कार्य करे। अभी तक के रिजल्ट में मास्टर सूर्य के समान नॉलेज की लाइट देने के कर्त्तव्य में सफल हुए हो लेकिन किरणों की माइट से हरेक आत्मा के संस्कार रूपी कीटाणु को नाश करने का कर्त्तव्य करना है। लाइट देने में पास हो। माइट देने का कर्त्तव्य अब रहा हुआ है। बापदादा के पास चार लिस्ट हैं।

(1) सर्विसएबल (2) सेन्सिबल (3) सक्सेसफुल और (4) वैल्युबल। सक्सेसफुल भी सब नहीं होते, वैल्युबल भी सब नहीं होते हैं। कोई अपने गुणों से, चरित्रों से वैल्युबल बन जाते हैं लेकिन सर्विस के प्लैनिंग में सक्सेस नहीं होते हैं। हरेक अपने चार्ट को जान सकते हैं। देखना है हमारा किस लिस्ट में नाम होगा। कोई कोई का चारों में भी नाम है। कोई का दो में, कोई का तीन में कोई का एक में है। वैल्युबल का मुख्य गुण यह होता है जो उसको स्वयं भी अपने समय की, संकल्प की और सर्विस की वैल्यु होती है। इसलिए उनके संकल्प, शब्द वा उस द्वारा जो सर्विस होती है उसकी और भी वैल्यु रखते हैं वा ड्रामा अनुसार उनकी वैल्यु हो जाती है। सभी उनको वैल्युबल की दृष्टि से देखते हैं। सर्विसएबल फर्स्ट हैं या सेन्सिबुल फर्स्ट है? दोनों की अपनी-अपनी विशेषता है। सेन्सिबल की प्लैनिंग बुद्धि ज्यादा होगी लेकिन प्रैक्टिकल में लाने की विशेषता कम होती है। और सर्विसएबल जो होता है वह प्लैनिंग कम करता लेकिन प्रैक्टिकल में आने का उसमें विशेष गुण होता है। कोई में सेन्स भी होता है और सर्विसएबल का गुण भी होता है। इस स्थापना के कर्त्तव्य में दोनों ही आवश्यक हैं। उनका संकल्प, प्लैन जो चलता है उससे भविष्य बनता है। उनका कर्म से बनता है। अधिक प्रभाव इसका रहता है। और सफलतामूर्त का फिर अव्यक्ति स्थिति के आधार पर परिणाम निकलता है। कोई-कोई का प्लैन भी चलता है, प्रैक्टिकल भी करते हैं लेकिन सफलता कम होती है। सर्विसएबल हो सकते हैं लेकिन सफलतामूर्त सभी नहीं हो सकते। कोई को ड्रामा अनुसार जैसे सफ़लता का वरदान प्राप्त हुआ होता है। उन्हों को मेहनत कम करनी पड़ती है। सहज ही सफ़लता मिल जाती है। यह ड्रामा में हरेक का अपना पार्ट है। अच्छा!

टीचर्स तो है ही टीचर्स। टीचर्स को सदैव यह स्मृति में रहना चाहिए कि टीचर बनने से पहले स्टूडेन्ट हूँ। स्टूडेन्ट स्मृति से स्टडी याद रहेगी। जब स्वयं स्टडी करेंगे तो औरों को स्टडी करायेंगे। स्टूडेन्ट लाइफ़ न होने के कारण औरों को स्टूडेन्ट नहीं बना सकेंगे। वातावरण को बदलने के लिए अपने को सदैव यह समझना चाहिए कि मैं मास्टर सूर्य हूँ। सूर्य का कर्त्तव्य क्या होता है? एक तो रोशनी देना, दूसरा किचड़े को खत्म करना। तो सदैव यह समझना चाहिए कि मेरी चलन रूपी किरणों से यह दोनों कर्त्तव्य होते हैं। सर्व आत्माओं को रोशनी भी मिले, किचड़ा भी खत्म हो। मानो, रोशनी मिलते किचड़ा खत्म न हो तो समझो कि मेरी किरणों में पावर नहीं। जैसे धूप तेज़ नहीं तो कीटाणु खत्म नहीं होंगे। मेरे में पावर कम तो ज्ञान रोशनी देगा परन्तु पुराने संस्कारों रूपी कीटाणु खत्म नहीं होंगे। जितनी पावरफुल चीज उतनी जल्दी खत्म। पावर कम तो समय बहुत लगेगा। तो पावरफुल बनना है। ऐसे नहीं समझो कि पढ़ी-लिखी नहीं हूँ। सृष्टि की नॉलेज पढ़ ली तो उसमें सब आ जाता है। अच्छा।